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28 August 2010

तुम चाहो तो.....

तुम हो भाग्य विधाता राष्ट्र के,
तुम को जागना होगा
सोई हुई मानवता को अब
पुनः जगाना होगा॥

कंटकों के मध्य तुम को
गुल सा खिल जाना है
तुम हो सुमन राष्ट्र उपवन के
जग को तुम्हे महकाना है॥

तुम हो भाग्य विधाता राष्ट्र के
आलोकित जग को कर दो
तुम बन नायक जन जन के
नव उल्लास ह्रदय में भर दो॥

तुम चाहो तो सुकवि बन
नव रस नव रंग वर्षा सकते हो
तुम चाहो तो निराशा को
नव आशा दिखला सकते हो॥

तुम चाहो तो सागर को भी
हिम सा कठोर बना सकते हो
तुम चाहो तो पतझड़ में भी
नभ को महका सकते हो॥

उठो शांति के नव दूत युवाओं
जाग्रत हो!वीर व्रत धरो
कर न्योछावर सर्वस्व राष्ट्र को
आगे बढ़ो !विजय श्री वरो !!

8 comments:

  1. बहुत खूब...............

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  2. सार्थक व सटीक लेखन ।

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  3. प्रेरणादायक आह्वान..!! मधुर संगीत..!!!

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  4. बहुत सुन्दर आह्वान्।

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  5. पावन भाव, प्रेरक कल्याणकारी आह्वान...

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