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05 February 2011

आँचल तले धूप

वो उसको मिली
एक नन्ही कली
सड़क किनारे
कलपती हुई सी
विधाता ने दे दिया था
उसको जीवन

पर हाय! जननी का मन
द्वन्द हुआ होगा
हलचल मची होगी
कुछ पल शायद
वो भी रोयी होगी
मजबूरी थी कि
हया थी
कुछ कुदरत की भी
दया थी

पास से गुज़र रही थी
'वो'
'वो' उसकी असली जननी
जिसने मर्म समझा
उसके जीवन का

वो छुटकी चुहिया
देख रही थी
उसे टुकुर टुकुर
हाथ पैर पटक रही थी
मचल रही थी
उसकी बाहों में
समा जाने को
प्यार पाने को

और अगले ही पल
जैसे खींचता है चुम्बक
लोहे को
अनजान ममता ने
खींच  लिया उसे 
और दिखा दी
धूप
अपने आँचल की
छाँव तले.
 

28 comments:

  1. और अगले ही पल
    जैसे खींचता है चुम्बक
    लोहे को
    अनजान ममता ने
    खींच लिया उसे
    और दिखा दी
    धूप
    अपने आँचल की
    छाँव तले
    ...sundar samvedansheel mamtamayee prastuti....

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  2. माँ की ममता का सुन्दर चित्रण सिर्फ़ जन्म देने से ही माँ नही होती।

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  3. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..ममता अपने पराये में कोई फर्क नहीं करती...

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  4. अनजान ममता ने
    खींच लिया उसे
    और दिखा दी
    धूप
    अपने आँचल की
    छाँव तले.

    बहुत ही अच्छा मां की ममता का चित्रण...मां केवल मां होती है...अपनी या पराई नहीं...

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  5. इनकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।

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  6. और दिखा दी
    धूप
    अपने आँचल की
    छाँव तले..
    बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति !

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  7. बेहद मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  8. बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।

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  9. बहुत सुंदर भावनात्मक वर्णन ..... ममतामयी विचारो में पगी रचना

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  10. यशवंत माथुर जी सुंदर कविता और कर्ण प्रिय संगीत ने सुबह सुहानी कर दी| बधाई|

    ReplyDelete
  11. और अगले ही पल
    जैसे खींचता है चुम्बक
    लोहे को
    अनजान ममता ने
    खींच लिया उसे
    और दिखा दी
    धूप
    अपने आँचल की
    छाँव तले.

    नवीन जी ने सही कहा कविता हृदयस्पर्शी थी ही संगीत भी किसी और दुनिया में ले गया. बहुत अच्छा लगा. बहुत बहुत आभार.

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  12. ममता का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण ...
    खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ...

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  13. बहुत सुन्दर !

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  14. मनोज कुमार जी के शब्दों में कहूँ तो... लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति...

    बहुत सुन्दर

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  15. और अगले ही पल
    जैसे खींचता है चुम्बक
    लोहे को
    अनजान ममता ने
    खींच लिया उसे
    और दिखा दी
    धूप
    अपने आँचल की
    छाँव तले.


    bhavpoorn rachna k liye badhai

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  16. पास से गुज़र रही थी
    'वो'
    'वो' उसकी असली जननी
    जिसने मर्म समझा
    उसके जीवन का

    यशवंत जी
    बहुत मर्मिक अभिव्यक्ति है ........

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  17. माँ की ममता का कोई विकल्प नहीं !
    दिल को छूती सुन्दर अभिव्यक्ति

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  18. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
    चर्चा मंच पर लेने के लिए आदरणीय मनोज जी का विशेष आभार.

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  19. मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
    वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
    कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  20. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है

    नयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -

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  21. बहुत संवेदनशील रचना ...

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  22. मार्मिक...संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना.

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  23. मानवीय संवेदना की सुंदर कथा.

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