प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

20 February 2012

मजबूरी है....

देख रहा हूँ
फिर उस ओर
पीछे मुड़ कर
की थी जिधर से शुरुआत
चलने की

बहुत पीछे कहीं
गुमनाम हो कर
खो चुके हैं अस्तित्व
शुरुआती कदमों के निशान
मगर फिर भी
मन हो रहा है
फिर से उस ओर जाने को
ढूंढ लाने को
बीता कल
प्रकट रूप मे
जो संभव नहीं
चाहने से

बस उस ओर
देखते रहना है
रह रह कर
ताकना है
उस जमीं को
बुला रही है
खींच कर
अपनी ओर 

अफसोस
मजबूरी है
आज मे जी कर
बुनते रहना है
आने वाले 
कल के ख्वाब
बीते कल की
तड़प से
बेखबर
हो कर  ।



30 comments:

  1. देख रहा हूँ
    फिर उस ओर
    पीछे मुड़ कर
    की थी जिधर से शुरुआत
    चलने की.....

    और आज भी देख रहे हैं उधर ही.....

    ReplyDelete
    Replies
    1. उस जमीं को
      बुला रही है
      खींच कर
      अपनी ओर very nice.

      Delete
  2. समय के तानेबाने और जीवन की जद्दोज़हद की बात ...सुंदर लिखा है....

    ReplyDelete
  3. कल आज और कल का सफ़र तो कहते ही रहना है!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति,.....

    शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
    MY NEW POST ...सम्बोधन...

    ReplyDelete
  5. सच ही कहा है यशवंत जी, यह बीता कल बरबस ही हमें अपनी ओर खींचता रहता है ओर हम कुछ क्षण के लिए फिर उन्ही लम्हों को पुनः जीना चाहते है....... बहुत गहन अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  6. यही तो वर्तमान का दुखडा है...
    भूत और भविष्य के बीच पिसता है...
    अच्छी रचना
    सस्नेह.

    ReplyDelete
  7. मजबूरी है
    आने वाले कल के ख्वाब बुनना ही होता है अतीत की तड़प से बेखबर होकर...
    गहन अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
  8. पीछे मूड कर देख तो सकते हैं ॥पर बढ्न तो आगे ही है ... सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  9. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच
    पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

    ReplyDelete
  10. बुनते रहना है
    आने वाले
    कल के ख्वाब

    सही कहा, यूँही करते रहते हैं हम
    http://www.poeticprakash.com/

    ReplyDelete
  11. बीते कल की तड़प से बेखबर होकर ...
    आज कल का खवाब बुन लिया ...

    ReplyDelete
  12. सुन्दर रचना .बधाई .

    ReplyDelete
  13. Yashwant ji
    sabse pehle is khubsurat rachna ke liye
    aapko badhai.
    insaan vartmaan main reh kar,
    bhavishy ki aur dekhta hain
    jo beet gaye hain pal jeevan ke,
    use yaadon main sanjo kar rakhta hain.
    vaapis beete lamho main chah kar bhi
    lauta nahi jaa sakya.

    ReplyDelete
  14. अतीत का मोह और भविष्य की कल्पना दोनों ही स्वप्न हैं..जीना तो वर्तमान में ही है...

    ReplyDelete
  15. अत्यंत सुंदर रचना....
    सादर.

    ReplyDelete
  16. गहन अभिव्यक्ति.....अतीत से मुक्त होना बहुत कठिन है ।

    ReplyDelete
  17. वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  18. इन ख्याबो की दुनिया की बात ही अलग हैं ...

    ReplyDelete
  19. sach apni majboori khud hi behatar dhang se jaanta hai majboori mein jeeta insan....
    bahut sundar yatharthparak rachna..

    ReplyDelete
  20. कल को भुला कर ख्वाब सजाते रहना ही तो जिन्दगी है..... बहुत ही सुन्दर रचना.....

    ReplyDelete
  21. bahut hi sundr rachna hai ,man chhu gaee

    ReplyDelete
  22. अफसोस
    मजबूरी है
    आज मे जी कर
    बुनते रहना है
    आने वाले
    कल के ख्वाब
    बीते कल की
    तड़प से
    बेखबर
    हो कर ।...बहुत गहन अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  23. बहुत सुन्दर रचना |
    दो लाइन कहना चाहूंगी .......
    बीते कल कि यादों को याद करके रोता है |
    देखो न अब भी ये बालपन रह रहकर मचलता है |

    ReplyDelete
  24. अफसोस
    मजबूरी है
    आज मे जी कर
    बुनते रहना है
    आने वाले
    कल के ख्वाब
    बीते कल की
    तड़प से
    बेखबर
    हो कर ।
    shayad yahi jeevan hai
    sunder
    rachana

    ReplyDelete
  25. बहुत पीछे कहीं
    गुमनाम हो कर
    खो चुके हैं अस्तित्व
    शुरुआती कदमों के निशान
    मगर फिर भी
    मन हो रहा है
    फिर से उस ओर जाने को
    ढूंढ लाने को
    बीता कल
    प्रकट रूप मे
    जो संभव नहीं
    चाहने से
    मन के देहरी पर दस्तक देते आपके मनमोहक भाव अति सुन्दर हैं...
    सादर..!

    ReplyDelete
  26. बहुत ही सुन्दर , गहन भावाभिव्यक्ति है
    एक गीत याद आ गया,,,
    ये जीवन है इस जीवन का यही है यही है रंग रूप
    थोड़े गम ,थोड़ी खुशिया,,,,
    बहुत ही बेहतरीन रचना है....

    ReplyDelete
  27. सुंदर लिखा है..

    ReplyDelete
+Get Now!