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21 March 2012

कभी बड़ी मत होना

आज फिर उसे देखा
रोज़ की तरह
आज भी 
वो खेल रही थी
अपने घर के बाहर

मैं उसे रोज़ देखता हूँ
कभी कभी छेड्ता हूँ 
और वो जब दौड़ती है
'अंकल' को मारने के लिये
उन पलों का आनंद
ताज़ा रहता है
जेहन मे
काफी समय तक

उसका नटखटपन
उसकी तुतलाहट
उसकी खीझ और
खुशी 
काफी है
किसी को भी
मोहने के लिए

वो छुटकी
दोस्त है मेरी
हर बार
मैं
उससे यही कहता हूँ-
कभी बड़ी मत होना
और वो
मेरी आँखों मे
अपनी नासमझ
आँखें डाल
मेरी गोद मे
इठलाती हुई 
झूमती है
अपनी मस्ती मे 
जैसे कह रही हो 
मुझे ये सब
नहीं पता ।

(काल्पनिक)

47 comments:

  1. bahut hi komal si rachna,ek shukhad ahasaas kara gayee....:)

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  2. बहुत कोमल अहसास ....सुंदर प्रस्तुति...

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  3. कोमल अहसास... नन्ही को देखकर मन तो यही कहता है कभी बड़ी मत होना लेकिन समय कहाँ मानता है, आखिर उसे बड़ा कर ही देता है...

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  4. बहुत ही मासूम और कोमल भाव लिये प्यारी सी भोली सी सुन्दर रचना..

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  5. मासूमियत का भाव संजोए सुंदर रचना!

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  6. बहुत ही कोमल और भावपूर्ण एहसास...

    बहुत सुन्दर रचना

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  7. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति ..
    पर बडी होना भी तो आवश्‍यक है ..
    कौन संभालेगा जीवनभर बचपन को !!

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  8. आपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  9. bahut hi sundar bhav liye sukhad rachna.....

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  10. bahut sundar kalpana.हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .

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  11. Bahut pyaari kavita! sach hai.. bachchon man ke sachche, saari jag ke aankh ke taare!!

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  12. bahut sundar kalpana.हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .

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  13. बहुत सुन्दर कल्पना.....

    आज उससे कुछ पता नहीं.....बड़ी होना भी चाहेगी....मगर फिर जब सब पता चल जाएगा तब वापस नन्ही सी बन जाने की जिद्द करेगी....

    बहुत कुछ कह गयी ये रचना यशवंत.
    सस्नेह.

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  14. जिंदगी के मासूम पलों से रूबरू कराती एक मासूमियत भरी रचना.... सुन्दर!

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  15. उससे यही कहता हूँ-
    कभी बड़ी मत होना
    और वो
    मेरी आँखों मे
    अपनी नासमझ
    आँखें डाल
    मेरी गोद मे
    इठलाती हुई
    झूमती है
    अपनी मस्ती मे
    जैसे कह रही हो
    मुझे ये सब
    नहीं पता ।
    wah bhai mathut ji bahut bahut badhai ...vakai bahut hi sargrbhit rachana likhi hai ap ne .

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  16. कोमल भावों से परिपूर्ण भावपूर्ण रचना.....

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  17. मेरी आँखों मे
    अपनी नासमझ
    आँखें डाल
    मेरी गोद मे
    इठलाती हुई
    झूमती है
    अपनी मस्ती मे
    जैसे कह रही हो
    मुझे ये सब
    नहीं पता ।

    सही कहा... ...
    हम लड़कियां उसी उम्र में ठहर जातीं तो अच्छा होता हमारे लिए भी....!

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  18. सुंदर भाव .... गहरी सोच लिए

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  19. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आपने!

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  20. इन्नोसेंस और नॉलेज की सनातन कथा. बहुत सुंदर रचना.

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  21. man ko chhu jaane wali rachna ,bdhaai aap ko

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  22. bahut hi khubsurat rachna hai ,acha lga padh kar

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  23. umda,bahut hi umda!

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  24. Kitna aacha hota..jo hum sab bhi kbi bde na hue hote....

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  25. आपकी ये दुआ लग जाए उसे!
    कभी बड़ी मत होना..

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  26. वाह ....अनुपम भाव संयोजन ...

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  27. खूबसूरत कल्पना ...

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  28. कोमल भाव ...पर वक़्त रुकता कहाँ है ?

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  29. खूबसूरत भावों में सजी सुन्दर रचना |

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  30. प्यारी सी रचना...
    हार्दिक बधाई.

    ReplyDelete
  31. वो छुटकी
    दोस्त है मेरी
    हर बार
    मैं
    उससे यही कहता हूँ-
    कभी बड़ी मत होना
    और वो
    मेरी आँखों मे
    अपनी नासमझ
    आँखें डाल
    मेरी गोद मे
    इठलाती हुई
    झूमती है
    अपनी मस्ती मे
    जैसे कह रही हो
    मुझे ये सब
    नहीं पता ।
    humen pata hai, esiliye to hamara man kahata hai ki badi mat hona


    यशवन्त जी, नव संवत्सर की ढेर सारी शुभकामनाएं आपको भी। नव देवियों की शक्ति से सिंचित आप पूरे साल ऊ र्जा और उत्साह से सक्रिय रहें। मेरी सुझाव आमंत्रित करने के लिए स्वागत और आपको धन्यवाद!

    ReplyDelete
  32. वो छुटकी
    दोस्त है मेरी
    हर बार
    मैं
    उससे यही कहता हूँ-
    कभी बड़ी मत होना
    और वो
    मेरी आँखों मे
    अपनी नासमझ
    आँखें डाल
    मेरी गोद मे
    इठलाती हुई
    झूमती है
    अपनी मस्ती मे
    जैसे कह रही हो
    मुझे ये सब
    नहीं पता ।
    lekin hame pata hai esiliye to kahate hain ki kabhi badi mat hona, chhutaki! यशवन्त जी, नव संवत्सर की ढेर सारी शुभकामनाएं आपको भी। नव देवियों की शक्ति से सिंचित आप पूरे साल ऊ र्जा और उत्साह से सक्रिय रहें। मेरी सुझाव आमंत्रित करने के लिए स्वागत और आपको धन्यवाद!

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  33. और देखते देखते वो बचपन बीत जाता है .... भोला बचपन जगह ले लेता है समय में पके हुवे चरित्र की ... खूबसूरत एहसास ...

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  34. bahut hi sundar kalpana hai tumhari...... ise to haqiqat me hona chahiye tha..

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  35. ये नहीं पता होना ही बाल सुलभ है जो बना रहे..सुन्दर रचना.

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  36. बचपन जैसी सरल रचना ........

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  37. न जाने कितनी बार इस तरह के भाव उठते हैं ......अनजान होते हुए भी ...रोज़ देखना ..फिर मुस्कुराना ...फिर बातें..कालोनी के बच्चे ...कोई नाता न होते हुए भी एक डोर बंध जाती है ..एक रिश्ता बन जाता है ..बहुत ही सहज ..सच्ची प्रस्तुति

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  38. कहीं न कहीं हम में भी ये बचपन मौजूद है ।

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  39. बचपन के दिन बहुत ही प्यारे और बेफिक्री के दिन होते है...
    कोमल अहसास लिए बहुत ही सुन्दर कल्पना है.....

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  40. जब उसे देखता हूँ
    उसमें अपने को पाता हूँ
    वह मुझ जैसी ही दिखती है
    उसके चंचल शोखी में
    मैं भी अपने बचपन में
    टहल आता हूँ
    सुनीता
    आपकी यह कविता अपनी-अपनी सी लगी...
    सादर !!!

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  41. sneh avum jeevan ki sachchai ke dar se bhari rachna, achha likha hai

    shubhkamnayen

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