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24 March 2012

रूप

तुम से कहा था न
मिलना मुझे
अपने उसी रूप मे
जो तुम्हारा है
पर अफसोस
मैं देख पा रहा हूँ
वही रूप
जिसे तुम
देखते हो
रोज़
आईने के सामने
वो रूप नहीं
भ्रम है
मुखौटा है
जो
काला है
कभी गोरा है
जिसकी कल्पना
कभी
चित्र बन जाती है
और कभी कविता
पर अगर
देख सको
कभी 
अपना असली रूप  
तो करा देना
पहचान
मुझे भी
मेरे असली रूप की
जिसकी मैं 
तलाश मे हूँ ।

32 comments:

  1. कौन है जिसने मुखौटा नहीं पहना....
    सुन्दर रचना..
    सस्नेह.

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  2. सच! मुखौटे के पीछे छिपा असली चेहरा देखना वाकई मुश्किल है...सुन्दर रचना....

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  3. सुन्दर आत्म-मंथन!
    सादर

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  4. मुखौटे के पीछे एक और मुखौटा..ये दुनिया ही ऐसी है...बहुत सुन्दर रचना..यशवन्त बहुत बहुत बधाई..

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  5. कहाँ आज असली चेहरा दिखाई देता है...सभी मुखोटे पहने हैं...सुंदर रचना..

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  6. परदे में रहने दो पर्दा न उठाओ पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा...
    सुन्दर, सार्थक रचना.....

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  7. apna asli chehra to apni antaraatma hi dekh sakti hai chahe mukhota hi kyun na laga ho ,usse kuch nahi chipta.
    bahut achchi abhivyakti.

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  8. असली चेहरा हमारी आत्मा से छिपा नहीं रहता... गहन भाव... सुन्दर रचना...

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  9. कविता दार्शनिक बिंदु पर ठहराव पाती है. बहुत खूब यशवंत जी.

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  10. वो रूप नहीं
    भ्रम है
    मुखौटा है/तो करा देना
    पहचान
    मुझे भी
    मेरे असली रूप की
    जिसकी मैं
    तलाश मे हूँ ।
    तलाश जब जेहन में आ जाती है तो राह भी मिल जाती है ....सुंदर भाव लिए रचना ...................

    ReplyDelete
  11. वो रूप नहीं
    भ्रम है
    मुखौटा है/तो करा देना
    पहचान
    मुझे भी
    मेरे असली रूप की
    जिसकी मैं
    तलाश मे हूँ ।
    तलाश जब जेहन में आ जाती है तो राह भी मिल जाती है ....सुंदर भाव लिए रचना ...................

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  12. सुंदर ...विचारणीय भाव

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  13. खुद को तलाशती विचारणीय रचना...

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  14. खुद क तलाशती और खुद में उलझती रचना.....

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  15. awesome characterization of "Roop"... !!

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  16. bhram ko htana itana aasan nhin hae.sundar post hae bdhai.mere blog par aapka svagat hae.dhanyavad.

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  17. मुखोटों की भीड़ में ढूंढते चेहरे की कहानी ... संजीदा ...

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  18. मुखौटों के बाजार में हम अपनी सूरत भुला बैठे...

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  19. देख सको
    कभी
    अपना असली रूप
    तो करा देना
    पहचान....waah bahut achchi abhiwyakti yashwant jee ....aapki aavaj bhi bahut achchi hai thanhs nd aabhar.

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  20. अपनी ही पहचान की तलाश में आकुल रचना...... बहुत खूब!

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  21. एक चेहरे के पीछे,कई चेहरे हैं यारों
    कब तक कोई बोलें,अपना नकाब तो उतारों...

    दार्शनिक भाव का बोध कराती एक रचना...

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  22. Har insaan ka alag hi chehra h is duniya me....hum kuch nai kar sakte.... :(

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  23. यह सच है ....हम सबने इतने मुखौटे पहन रखे हैं ...की कहीं अपनी ही पहचान खो बैठे हैं ...

    बाद मुद्दतके जो आइना देखा ..तो हुआ महसूस
    यह कौन है ?...यह मैं हूँ ? ....यह मैं तो नहीं ...!!!!

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  24. सुंदर रचना,यशवन्त जी...

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  25. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  26. बेहतरीन रचना..

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  27. क्या बात है , बहुत खूब..

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  28. सटीक शब्द सुन्दर पोस्ट।

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  29. सुन्दर पोस्ट असली चेहरे की पहचान में... उम्दा

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