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19 August 2012

उजला-काला

वर्तमान के उजले
मुखौटे के भीतर
भविष्य का काला सच दबाए
कुछ लोग चलते जाते हैं
अपनी राह
पूरे होशो हवास मे
आत्मविश्वास मे

वो जानते हैं
भेड़चाल का परिणाम
झूठ का सच मे बदलना  है

समय के साथ
धुलना तो है ही
इस सफेदी को
पर तय है
कालिख का
प्रसाद चख कर
अंध भक्तों को 
बिना संभले गिरना है

क्योंकि मुखौटे की
अस्थायी ,स्थायी पहचान
देखने नहीं देती
खरोच पर उभरी
काली लकीर को। 


©यशवन्त माथुर©

26 comments:

  1. वर्तमान के उजले
    मुखौटे के भीतर
    भविष्य का काला सच दबाए
    कुछ लोग चलते जाते हैं
    अपनी राह
    पूरे होशो हवास मे
    आत्मविश्वास मे
    कब तक चलेगें ?
    जो आज तक नहीं हो सका है ,
    ज्यादा दिन तक उनके साथ भी नहीं चलेगा .... !!

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  2. क्योंकि मुखौटे की
    अस्थायी ,स्थायी पहचान
    देखने नहीं देती
    खरोच पर उभरी
    काली लकीर को। sacchi aur sateek baat kahi apne....

    ReplyDelete
  3. वर्तमान के उजले
    मुखौटे के भीतर
    भविष्य का काला सच दबाए
    कुछ लोग चलते जाते हैं
    अपनी राह
    पूरे होशो हवास मे
    आत्मविश्वास मे
    और यही भ्रष्ट लोग ही बर्बादी का कारण होते है...

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  4. गहन गंभीर रचना !
    एक ज़िद हो जैसे...गिरने की,
    जो चल देते हैं उजले अंधेरों की ओर...

    ReplyDelete
  5. गहन गंभीर रचना !
    एक ज़िद हो जैसे...गिरने की,
    जो चल देते हैं उजले अंधेरों की ओर...

    ReplyDelete
  6. गहन गंभीर रचना !
    एक ज़िद हो जैसे...गिरने की,
    जो चल देते हैं उजले अंधेरों की ओर...

    ReplyDelete
  7. "वर्तमान के उजले
    मुखौटे के भीतर
    भविष्य का काला सच दबाए
    कुछ लोग चलते जाते हैं
    अपनी राह
    पूरे होशो हवास मे
    आत्मविश्वास मे"
    और आखिर कोयलो की द्लाली में मुँह काला हो ही जाता है। सरोकार लिए सार्थक रचना।

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  8. क्योंकि मुखौटे की
    अस्थायी ,स्थायी पहचान
    देखने नहीं देती
    खरोच पर उभरी
    काली लकीर को।
    बडी गहरी बात कह दी।

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  9. बहुत सुन्दर ..गहन रचना ..यशवन्त..ईद मुबारक..

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  10. बहुत बढ़िया रचना यशवंत....
    सोच में डाल देती हैं हर पंक्ति....
    बहुत सुन्दर.
    सस्नेह
    अनु

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  11. शब्द रहित समर्थन
    सादर

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  12. मुखौटा नकली चढा के,करते है उपभोग
    जिस दिन उतर जागा,जान जायेगें लोग,,,,,

    RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,

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  13. वो जानते हैं
    भेड़चाल का परिणाम
    झूठ का सच मे बदलना है

    गहन अभिव्यक्ति

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  14. बिल्कुल सही...गहरी अभिव्यक्ति....

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  15. शायद अरसे बाद लौटा हूँ यशवंत!
    कविता में स्याह और सफ़ेद का ज़िक्र है और ब्लॉग में सुर्ख रंग भर दिया है!
    क्या बात है!
    आशीष
    --
    द टूरिस्ट!!!

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  16. जहाँ देखो वहीँ मुखौटे ...

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  17. गंभीर सुन्दर रचना

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  18. वो जानते हैं
    भेड़चाल का परिणाम
    झूठ का सच मे बदलना है

    वाह...वाह...यह बात इस तरह से आपने कही है कि नई बात पैदा हुई है. बहुत खूब.

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  19. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 22/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  20. क्योंकि मुखौटे की
    अस्थायी ,स्थायी पहचान
    देखने नहीं देती
    खरोच पर उभरी
    काली लकीर को।

    बहुत ही खूबसूरत ....

    ReplyDelete
  21. क्योंकि मुखौटे की
    अस्थायी ,स्थायी पहचान
    देखने नहीं देती
    खरोच पर उभरी
    काली लकीर को।

    निःशब्द करते लाइन जहाँ भावनाओं से बड़े भाव हैं

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  22. बहुत गहराईयुक्त सुन्दर रचना ....

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  23. मुखोटे और भी बहुत कुछ छुपा लेते हैं चेहरे से ...
    गहरी बात कही है ...

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  24. गूढ़ बात को अनोखे में अंदाज में कह गए, वाह !!!!!!

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  25. gehari baat keh di apne yashwant bhai apne...

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