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05 September 2012

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ --अरे गुरु जी का वह डंडा !

 मेरे बाबा जी (Grand Father) स्वर्गीय ताज राज बली माथुर जी ने वर्ष 1955 -56 के लगभग सैन्य अभियंत्रण सेवाओं ( M E S) से नौकरी कीशुरुआत की थी। चूंकि सरकारी आदेशानुसार कार्य स्थल पर हिन्दी अनिवार्य कर दी गयी थी अतः ओफिशियल ट्रेनिंग के हिन्दी पाठ्यक्रम मे 'सरल हिन्दी पाठमाला' (1954 मे प्रकाशित) नाम की पुस्तक भी शामिल थी जिसकी मूल प्रति हमारे पास आज भी सुरक्षित है।

प्रस्तुत हास्य कविता इसी पुस्तक से स्कैन कर के यहाँ दे रहे हैं।यह कविता रूढ़ीवादी शिक्षा-प्रणाली पर तीखा व्यंग्य है ।

और स्पष्ट पढ़ने के लिए कृपया चित्र पर क्लिक करें  

18 comments:

  1. शिक्षक दिवस पर बहुत बढ़िया कविता पढवाने के लिए आभार!
    सच गुरुजी के डंडे का डर अब तक आँखों से दूर नहीं हुआ है ..आज भले ही न वे गुरु रहे न डंडा ..
    शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. पहले की पढ़ाई बहुत अनुशाषित होती थी,आजकल पढाना सर्फ फार्मेल्टी बन गई है,,,,,

    RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

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  3. माता ने बंधवा दिया, इक गंडा-ताबीज |
    डंडे के आगे मगर, हुई फेल तदबीज |
    हुई फेल तदबीज, लुकाये गुरु के डंडे |
    पड़े पीठ पर रोज, व्यर्थ सारे हतकंडे |
    रविकर जाए चेत, पाठ नित पढ़ कर आता |
    अक्षरश:दे सुना, याद कर भारति माता ||

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    1. उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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  4. इस डंडे से तो डर हमेशा ही लगा रहा ...पर शायद वही दर आज मुकाम ताक ले आया है .... शिक्षक दिवस की शुभकामनाये !

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  5. wah, kya khoob jatan kiya hai....

    dhanyavaad:-)

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  6. बहुत सुन्दर !
    शिक्षक दिवस की शुभकामनायें !!

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  7. सुन्दर कविता..आपको भी शुभकामनाएँ..

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  8. सुंदर धरोहर सँजो कर रखा है आपने माथुर साहब शुक्रिया !

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  9. बहुत सुन्दर शुभकामनाएं..यशवन्त..मैने भी शिक्षक दिवस पर एक लेख पोस्ट की है मेरे वाल पर तो आरहा है लेकिन डेस्ट बोर्ड पर नही दिखारहा है..शायद तुम्हारे ्डे्स्ट बोर्द पर भी नही दिख रहा होगासमझ नही आया क्या हुआ..

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  10. भय बिन होत न प्रीत

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  11. पुराने गुरूजी और उनके डंडे!
    अच्छा लगा उन्हें याद करना !

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  12. बहुत सुंदर...शिक्षक दिवस की शुभकामनायें!

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  13. बहुत सुन्दर कविता...
    शुभकामनाये....
    :-)

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  14. सहेजने योग्य थांती.....शुभकामनायें

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  15. यह कविता पढ़ कर आज मैं फिर सिंहर उठा. अरे बाप रे!! क्या डंडा होता था.

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