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30 January 2013

बापू !

(1)

बापू !
राजघाट पर
आज लगे जमघट में
मुझे तलाश है
उन तीन बंदरों की
जो हुआ करते थे
कभी तुम्हारे हमराही
पर आज जो
छुपे बैठे हैं
फर्जी प्रवचनों और
मुखौटों के ढेर में कहीं। 

(2)

बापू!
तुम आज
दीवार पर टंगी
वह तस्वीर हो
जो मुस्कुराते हुए 
रो रही है
देख कर
आजादी का
एक नया रूप
हाँ
आजादी का नया रूप
जिसमें
नाबालिग को
अधिकार नहीं रोजगार का
पर
उसके कुकर्मों को
मिल जाता है
'उचित' न्याय।

(3)

बापू!
मैं नहीं कर रहा कामना 
तुम्हारी आत्मा की शांति की
क्योंकि मुझे पता है
तुम कुलबुला रहे हो
फिर से
इस धरती पर
आने को।

©यशवन्त माथुर©

18 comments:

  1. बहुत बेहतरीन, तीनो ही!

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  2. सम्वेदनशील प्रस्तुति यशवंत जी ! सचमुच बापू की आत्मा कराह रही होगी अपने भारत की यह दुर्दशा देख कर ! उन्हें कोटिश: नमन एवं भावभीनी श्रद्धान्जलि उनकी पुण्यतिथि पर !

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  3. इस महान आत्मा की पूरी मेहनत उसी दिन व्यर्थ हो गयी थी जिस दिन भारत माता खंडित हो गयी थी कुछ स्वार्थियों के कारण. सुन्दर अभिव्यक्ति यशवंत भाई.

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  4. आज के हालात देखकर तो गांधीजी भी कुलबुला रहे होंगे..
    की जिस भारत देश के लिए उन्होंने और उनके जैसे
    कई देशप्रेमियों ने कुर्बानी दी है,आज उस देश की हालत अपने ही देशवासियों ने ख़राब कर दी है...

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति , बापू को भावभीनी श्रद्धान्जलि

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति !!!

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  7. satik likha hai apne...abhi kay halat ko bapu say khoob joda hai....wah !

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति .कोटिश: नमन

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  9. तीनों रचनाएँ बहुत सुंदर .... सार्थक और सटीक ....

    आजादी का नया रूप
    जिसमें
    नाबालिग को
    अधिकार नहीं रोजगार का
    पर
    उसके कुकर्मों को
    मिल जाता है
    'उचित' न्याय।
    सौ फीसदी सही बात कही ...

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  10. Yashwant Mathur ji ....Badhai..Sundar aur sarthak abhivyakti ke liye ....

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  11. बापू की आत्मा की यह दुर्दशा , सुन्दर अभिव्यक्ति,

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  12. तीनों ही अति सुन्दर यशवंत ....गाँधी जी को उनकी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धान्जलि !

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  13. बहुत बढ़िया यशवंत....

    महात्मा को हमारा सादर नमन...

    सस्नेह
    अनु

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  14. सम्वेदनशील प्रस्तुति यशवंत जी ! सचमुच बापू की आत्मा कराह रही होगी अपने भारत की यह दुर्दशा देख कर ! उन्हें कोटिश: नमन एवं भावभीनी श्रद्धान्जलि उनकी पुण्यतिथि पर !
    I AM TOTALY AGREE WITH SADHANA WAID JI

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  15. बापू!
    मैं नहीं कर रहा कामना
    तुम्हारी आत्मा की शांति की
    क्योंकि मुझे पता है
    तुम कुलबुला रहे हो
    फिर से
    इस धरती पर
    आने को....संवेदनशील रचना...बापू ने क्‍या सोचा था और क्‍या हो गया...

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  16. andar umadte vichaaron ka isi prakaar hota hai praakatya.....behtareen!!!

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