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30 July 2013

कल्पना की लहरें .....

चित्र साभार-गूगल सर्च
(1)
कभी
कल कल कर
निर्बाध बह बह कर
किनारे पर आ लगती थीं
कल्पना की
अलग अलग लहरें....
कहती थीं
अपने हिस्से का सच
छोड़ जाती थीं
भीतर समाए हुए
सीपियों के कुछ निशां 
जिन से झलकती थी
सरसता और
मौलिकता ।

(2)
विकास के इस दौर में
पल पल बदलती रंगत में
न जाने कहाँ खो गयी है
वह निर्बाध कल कल
काली-स्याह
प्रदूषित
मेरे इस युवा समय की
भोंथरी कल्पना
अब अपने भीतर
सीप नहीं ...
लेकर चलती है
सड़े गले अवशेष
दरकिनार कर के
पुरानी बूढ़ी विरासत को
और किनारे की रेत मे
छोडती चलती है
भाव रहित
बे हिसाब ठोस
कंकड़ पत्थर
जो बने हैं
सरसता
और मौलिकता की
दुखियारी आँखों से
गिरते आंसुओं की
हर एक बूंद से। 

 ~यशवन्त माथुर©

14 comments:

  1. कल्पना की लहरें मोती सीप लाती रहेंगी किनारे तक... बची रहेगी मौलिकता!

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  2. बहुत सुंदर पोस्ट
    saral-sahaz shabdo men gudh abhivyakti
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. दोनों रचनाएँ गहरे अर्थ संजोये....

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  4. कल्पना की लहरें मन की सच्ची भावो को शब्द तो देगी ही..बहुत बढ़िया..शुभकामनाएं..यशवंत

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  5. सुंदर कविताएं ,उत्तम |

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  6. बहुत सुंदर

    यहाँ भी पधारे
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html

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  7. कल्पना की लहरें बड़ी गहराई से उठी हैं...
    बहुत सुन्दर
    सस्नेह
    अनु

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  8. सच कहा अब कम हो रहा है मौलिकता और बढ रहा है
    कृत्रिमता हमें कुछ करना होगा जिससे बनी रहे मौलिकता......

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  9. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  10. यशवंत जी, कविता का दायरा बहुत विशाल है..परमात्मा के जैसे कविता सब कुछ अपने में समेट लेती है, जो बात भी मानव मन को छू जाये आंदोलित करके उसके भाव जगत को विलोड़ित करे वह कविता ही है..कविता सप्रयास कही नहीं जाती अनायास ही हो जाती है..सो हम तो आपकी रचना को कविता ही मानेंगे...सत्य को देखने का प्रयास करती हुई सुंदर कविता..

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  11. kalpna ki lahron ne sacchai ka bakhoobi bayan kar diya ,....

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  12. भूल सुधार
    बुधवार की चर्चा में

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  13. बहुत सुन्दर

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  14. सुन्दर प्रभावी रचना … शुभकामनायें

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