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09 February 2014

पर्दे

चित्र साभार-http://home.howstuffworks.com/
न जाने क्यों
यहाँ हर पल
हर ओर 
दिखाई देते हैं
टंगे हुए पर्दे
जिनसे ढका हुआ
सबका मन
कभी
देखना ही नहीं चाहता 
बाहर की
आज़ाद बेपरवाह
जिंदगी को।

ये पर्दे
कुछ झीने
पारदर्शी हैं
जिनसे
मिल जाती है झलक
भीतर की
और कुछ
जो बने हैं
सूत और
खददर के पर्दे
लेने नहीं देते
भीतर की थाह
आसानी से।

मन की खिड़की पर टंगे
ये पर्दे
कभी ज़रूरत लगते हैं
और कभी
सदियों पुरानी
धूल की पर्त को ढोते हुए
मजबूर से लगते हैं ......
फिर भी 
देश, काल और वातावरण से परे
इनकी निर्विवाद
सार्वभौमिकता
कभी देखने नहीं देगी
भीतर का
कड़वा-मीठा सच।

~यशवन्त यश©

19 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !

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  2. badiya likha hai yashwant ji .. ye parde ab khud ko hi hataane padenge kyonki doosra koi toh inko hataa sakne mein saksham nahi

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  3. बहुत कुछ छुपा परदे के पीछे .....

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  4. मंगलवार 11/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी एक नज़र देखें
    धन्यवाद .... आभार ....

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  5. वाह ..पर्दों के प्रति भी इतनी सुंदर सोच । बहुत सुंदर

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  6. पर्दों में छुपी असलियत..कहाँ नजर आती है बंद परदों के बिच..सटीक भाव लिए बेहतरीन रचना...

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  7. पर्दे के पीछे रहस्य ही रहस्य भरे हैं .....बहुत सुंदर..!

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  8. कितने मन और कितने ही पर्दे
    बहुत खूब !

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  9. Replies
    1. यह 'कविता' है ही नहीं सर :)

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-02-2014) को "चलो एक काम से तो पीछा छूटा... " (चर्चा मंच-1519) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  11. ये परदे ढांक लेते है घर को , तन को और मन को भी !
    बहुत बढ़िया!

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  12. अच्छी अभिव्यक्ति ...... शुभकामनाएं !

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  13. ये कैसे पर्दे हैं जो न बाहर का देखने देते हैं न भीतर का..अब बाहर का तो मन नहीं देख सकता पर भीतर तो मन है फिर कौन नहीं देख सकता...

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  14. गहन अभिवयक्ति ...शुभकामनाएं

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  15. बहुत ही सुन्दरता से आपने परदे के मध्यम से जीवन के बहुत बड़े सत्य को उजागर किया है ... अंतिम पंक्तियाँ विशेष रूप से मन को छू गईं .. बधाई यशवंत जी !

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  16. parde ka sach..khoob chitran kiya hai.

    shubhkamnayen

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