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07 May 2014

वक़्त के कत्लखाने में -6

वक़्त के कत्लखाने में
उखड़ती साँसों को
साथ लिये
जिंदगी 
बार बार देख रही है
पीछे मुड़कर
और कर रही है
खुद से कई सवाल
जिनका जवाब
आसान नहीं
तो मुश्किल भी नहीं है
मगर
आँखों के सामने
हालातों की तस्वीर
उलझी हुई है इस कदर
कि संभव नहीं रहा
पहचानना
और ढूंढ निकालना
सही -सच्ची बातों को
'क्या 'क्यों' और 'कैसे'
अब बनने वाले हैं भूत
भविष्य की
परिभाषा रच कर
उखड़ती साँसों को 
साथ लिये 
जिंदगी 
निकल रही है 
अंतहीन सफर पर। 

~यशवन्त यश©

9 comments:

  1. वाह: बहुत बढ़िया ! शुभकामनाएं

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  2. Replies
    1. क्या, क्यों और कैसे के जवाब किसी को नहीं मिलते...यहाँ, जब तक सवाल पूछने वाले से मुलाकात नहीं हो जाती..

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  3. बहुत खूब..बेहतरीन प्रस्तुति..

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  4. 'क्या 'क्यों' और 'कैसे'
    अब बनने वाले हैं भूत
    sach kaha.... aur bhavishya mein ye hi sawal raah ko naya mod dete hain.

    achhi rachna

    shubhkamnayen

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. क्या क्यों और कैसे में उलझी ज़िन्दगी जानती है कि जवाब नहीं कोई, मगर... प्रभावशाली रचना, बधाई.

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