प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

01 February 2015

वक़्त के कत्लखाने में -8

बाहर चल रहे
तेज़ तूफान के असर से
वक़्त के कत्लखाने के भीतर
होने लगती है
हलचल 
हिलने लगते हैं पर्दे
दरवाज़े और खिड़कियाँ
अंतिम पल
गिनने लगती हैं
भीतर की रोशनियां  ..
हवा के तीखे झोंके
झकझोर देते हैं
कई पैबंद लगी
खंडहर सी इमारत की नींव
जिसमें रहने वाले
इंसानी शक्लो सूरत वाले
नवजात और
उम्रदराज जीव
कंपकपाने  लगते हैं
अनहोनी की आहट से
और तभी
उम्मीदों के कुछ बादल
कहीं से आ जाते हैं
छा जाते हैं 
और बरस जाते हैं
आँखों से आंसुओं की तरह
दे जाते हैं नमी
प्यास से व्याकुल
हिलती डुलती धरती को
और फिर
हल्की मुस्कुराहट के साथ 
लौट आते हैं
वही पुराने
सुकून के पल
वक़्त के
इसी कत्लखाने में। 
 
~यशवन्त यश©


(इस श्रंखला की पिछली पोस्ट्स यहाँ क्लिक करके
पढ़ सकते हैं।)  

No comments:

Post a Comment

1262
12029
+Get Now!