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01 April 2015

मूर्ख कौन ?

मूर्ख कौन ?

वह ?
जो दिन रात एक करके
खून पसीने से
सींचता है
खेतों में
लहलहाती फसलों को
और बदले में
झेलता है
आँधी-पानी
तीखे कटाक्ष
खाता है
समय की तीखी मार
और हो जाता है शरणागत
मृत्यु देवी के चरणों में......

या
मूर्ख
वह ?
जिसकी पोटली में
भरे रहते हैं
झूठ के
अनंत आश्वासन
और उसकी निगाहें
ताकती हैं मौका
किसी की
बंजर -उर्वर
धरती को
छलनी करके
आंसुओं की नींव पर
सपनों की
दुनिया सजाने का ....

जो भी हो
मूर्ख
और मूर्खता
जड़ मूल हैं
किसी की विपत्ति
और
किसी की समृद्धि का
क्योंकि
विकास और विनाश
संभव नहीं
सीधे सादे
तरीकों से
आज के समय में।

~यशवन्त यश©

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