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01 September 2019

क्या पार कर पाऊँगा?

यूं ही
समय के साथ चलते हुए
कभी-कभी ऐसा लगता है
मानो धारा
छोड़ देना चाहती हो
कहीं -किसी किनारे पर
अकेला
आत्ममंथन के
तिनके चुनने को।

वहाँ
उस किनारे पर
न जाने कितनी सदियों बाद
अनंत की परिक्रमा कर
गर मन चाहा
तो फिर लेने आएगी
खुद में समेटकर
बहा ले जाएगी
वही पुरानी
एक ही धारा। 

लेकिन !
लेकिन तब तक
अपने अंतिम क्षण तक
क्या पार कर पाऊँगा ?
विश्राम की
अग्नि परीक्षा।

-यश ©
01/09/2019

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