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26 July 2010

'वो' कहते हैं

'वो' कहते हैं,
मोहब्बत की बातें न किया करो
काफिरों को न,इस राह का मुसाफिर कहा करो
वो काफ़िर हैं- जिन्होंने दिल लगा लिया अपनी मर्ज़ी से,
न ये सोचा- कि महबूब का क्या मज़हब औ जात क्या है,
वो कहते हैं कि दफ़न कर देंगे
इस दास्तान ए इश्क को मगर
इतना भी नहीं जानते कि
जज्बात कभी मरते नहीं हैं.
तुम दफ़न कर दोगे,या जलादोगे उनके बदन
इतना याद रखना कि रूह कभी मिटती नहीं है।

-----(खाप पंचायतों द्वारा प्रेमी युगलों कि हत्या किये जाने पर)

20 July 2010

मोहब्बत कोई चीज़ नहीं…

न मोहब्बत कोई चीज़ है,
न मोहब्बत की बात करना,
ये वो ज़ख्म है जो,
जीते जी दिल को चीर देता है
न हँसना कभी,न रोने की बात करना
भूले हुए को न कभी तुम याद करना
ये जज्बातों की बात नहीं,
तन्हाई की सच्चाई है
उजाड़ गुलशन में न बहारों की आस करना.

17 July 2010

मैं स्वार्थी हूँ!!

लोग कहते हैं

तुम स्वार्थी हो

मैं कहता हूँ

ाँ!

हाँ!! मैं स्वार्थी हूँ

स्वार्थी तो

ऊपर वाला भी है

स्वार्थ उसका भी है

मनोरंजन पाने का

वो हँसता है!

शायद रोता भी होगा!

इंसानी कठपुतलियों को

सृष्टि के रंगमंच पर

अपनी भूमिका निभाते देखकर;

तो मैं क्या चीज़ हूँ-

एक अदना सा मानव!

मैं स्वार्थी हूँ!!

क्योंकि स्वार्थ

मुझे प्रेरणा देता है

नए आविष्कार करने की

कुछ नया सोचने की

ताकि मैं पा सकूँ

वो मुकाम

जिसकी मुझे तलाश थी !

13 July 2010

मेरे घर के सामने

कुछ मुर्गियां

खेलती हैं

आपस में

एक कतार में

एक साथ चलती हैं

और

पास के पानी से भरे गड्ढे में

लगाती हैं डुबकियाँ

वो काली हैं

कुछ सफ़ेद

और कुछ भूरी भी हैं

पर रंगभेद से बे परवाह

इंसानी धार्मिक और नस्लवादी

सोच से परे

वो लडती नहीं

बल्कि इठलाती हैं

अपने आत्म अनुशासन पर।

lakshya song 00

09 July 2010

न हम होंगे.......

न हम होंगे न हमारी बात होगी

हर तरफ पानी से घिरी आग होगी

होगी एक बेचैनी ?

आग पानी में मिल जाएगी

या फिर

पानी को ही जला कर

मिटटी में मिला जाएगी

दुनिया देखती रहेगी

खड़े हो कर तमाशा

न सुबह होगी न दोपहर

न फिर रात ही कभी आएगी।







05 July 2010

पत्रकारिता किधर जा रही है ?

आइये विगत कुछ दिनों की खास ख़बरों पर एक नज़र डालें--


१.अमिताभ बच्चन ने काकोरी में जमीन खरीदी


२.प्रधान मंत्री की कानपुर यात्रा के दौरान उनको भोजन में रंग मिली मूंग की दाल और फंगस युक्त खरबूजे के बीज शामिल थे।


३.क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने शादी की।


४.सचिन तेंदुलकर विम्बलडन में टेनिस मैच देखने गए


ये ख़बरें लगभग सभी अख़बारों ने प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित कीं ।


में पूछना चाहूँगा सभी अख़बारों के प्रमुखों से क्या एक आम आदमी का इन ख़बरों से कोई सरोकार है?हजारों लोग प्रतिदिन जमीन खरीदते और बेचते है तो अमिताभ बच्चन ने कौन सा बड़ा काम किया?देश की ९०-९५ प्रतिशत जनता रोज़ मिलावटी भोजन खाती है,चाहे वो रंग मिली दाल हो,पपीते के बीज मिली काली मिर्च ,या सिंथेटिक दूध ;सवाल यह है की जब हमारी सोच और समझ भी मिलावटी होती जा रही है तो अगर भारत के प्रधानमन्त्री को भोजन में मिलावटी दाल मिल भी गयी तो कौन सी बड़ी बात हो गयी? हजारों लोग हर दिन सगाई और फिर शादी करते हैं क्या महेंद्र सिंह धोनी ने इस तरह क्रिकेट का वर्ल्डकप जीत लिया?


एक तरफ तो बहुत से सम्मानित लेखक और स्तंभकार उच्च स्तर की पत्रकारिता और पत्रकारिता द्वारा भाषा को दिए गए संस्कारों की बात करते हैं वहीँ भ्रष्टाचार की बहती गंगा में आप ही के अधीनस्थ डूबकी लगाने से भी नहीं चूकते। एक सीन देखिये ----


दुकानदार : नमस्कार भैया!कैसे हो?


पत्रकार : बस आप अपनी सुनाओ? सुना है आजकल खूब बिजली चोरी कर रहे हो?(दूकान की छत से जाती हुई कटिया का फोटो दिखाते हुए)


दुकानदार :अब क्या बताएं भैया अगर ये न करें तो इस महंगाई में काम चलाना ही मुश्किल हो जायेगा।


पत्रकार :(मुस्कुराते हुए)और मुश्किल हो जायेगा,में ये फोटो कल के अखबार में छापने जा रहा हूँ।





और सीन का अंत तब होता है जब दुकानदार उस व्यक्ति की मुफ्त में सेवा पानी करता है और एक लिफाफा देता है। और अगले दिन उस से सम्बंधित खबर अखबार में नज़र नहीं आती।


ये तो एक उदाहरण है जो अक्सर कहीं न कहीं नमूदार हो ही जाता है। मेरे अपने अनुभव में है जब एक पार्टी के नेता जी द्वारा चढ़ावा देने से मना कर देने पर मीडियाकर्मी विपक्षी पार्टी के नेता जी से सम्बंधित खबर को ज्यादा प्रमुखता दे कर लिखता है।


ये केवल एक आरोप नहीं एक सच्चाई है जिसे हम जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं। बेहतर यह होगा की उपरोक्त तरह की ख़बरों को यदि मजबूरन छापना ही है तो क्या उन्हें रविवासरीय परिशिष्ट में स्थान नहीं दिया जा सकता?


यदि वाकई में हमें पत्रकारिता के उच्च स्तर की बात करनी है तो सभी अख़बारों के शीर्ष पदाधिकारियों को धरातल की और नज़र डालनी ही होगी।

01 July 2010

क्या होगा यादों से

कुछ लोग रखते हैं
यादों को संजोकर
और
कभी हँसते हैं
कभी रोते हैं
किसी ख़ुशी में
या
किसी गम में तड़प कर
मगर क्या होगा
यादों को
सहेजे रखने से
हंसने से या रोने से
बस वर्तमान में जीना है
झूठी भावनाओं से परे
एक साधारण से आज की तमन्ना ले कर.
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