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28 June 2018

वक़्त के कत्लखाने में -13

यूं ही
समय के
इस खालीपन में
खुद से
बातें करता हुआ
अतीत के झरोखों से
अपने
आज को देखता हुआ
कभी-कभी सोचता हूँ
क्या रखा है
धारा के साथ बहने में
या
धारा के विपरीत चलने में
एक आसान है
दूसरा कठिन
मगर चुनना तो है ही
किसी एक को
वक़्त के इस कत्लखाने में
खुद का अस्तित्व
कायम रखने के लिए।

-यश ©
28/06/2018

21 June 2018

ज़िंदगी धोखेबाज है

क्या पता कल था किसका
और किसका यह आज है
ज़िंदगी धोखेबाज है।

कल लिखे थे गीत सुनहरे
कल क्या लिखा जाएगा।

कोई कहेगा कर्कश स्वर में
कोई सुर में गाएगा।

यूं ही अकेले बैठे-ठाले
समय की स्याह कहानी के

टूटे-फूटे हर्फों के ये
पन्ने कौन समझ पाएगा।

ना-मालूम इन राहों पर अब
कैसे चलना आएगा।

थमना जिसने कभी न सीखा
बैठ कहीं सुस्ताएगा।

मिटेगा कोई राम भरोसे
कोई अमर हो जाएगा।

आना-जाना लगा ही रहेगा
सांस तो सिर्फ परवाज़ है
ज़िंदगी धोखेबाज है।


-यश ©
17 जून/2018


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