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14 February 2023

सुनो...... 2

सुनो! आज प्रेम का त्यौहार है..... मैं अपने आस-पास देख रहा हूँ वो सारे चेहरे...... जो कल तक मुरझाए हुए थे लेकिन आज खिले हुए हैं......  वो चेहरे! जिनको मिल गया है प्रेम...... वो चेहरे! जिन्होंने महसूस किया है प्रेम..... और ... वो चेहरे! जिनके इर्द-गिर्द.... गुलाब की मासूम पंखुड़ियों ने कर दिए हैं.....  अपने हस्ताक्षर।  इन चेहरों के बीच...   काश! एक दर्पण होता ......उस दर्पण में .......एक अक्स तुम्हारा होता... और..... दूर कहीं.... तुम्हारा अपना... 'मैं'..... खुश हो रहा होता...... तुम्हारी खिलती मुस्कुराहट के ......एक दर्जन भाव देख कर। 

सुनो!  तुम जहां भी हो.....तुमको आज का दिन मुबारक।   

-यशवन्त माथुर©

09 February 2023

सुनो ...... 1

सुनो! ..... मैं जानता हूँ....  कि तुम और मैं नहीं चल सकते एक ही राह पर... कि तुम्हारी राह अलग है और मेरी अलग ... कि तुम आसमाँ सी ऊंचाई हो और मैं... मैं? मैं सिर्फ एक परकटा परिंदा हूँ..... जो भर नहीं सकता परवाज़..... जो दे नहीं सकता आवाज़..... जो छू नहीं सकता तुम्हारे कंधे ...... जो  धरती की गोद में सर रखकर ताकता  रहता है........  हर घड़ी तुम्हें ......सिर्फ तुम्हें!.......  पता है क्यों? ............क्योंकि हर दूरी के बाद भी मुझे उम्मीद है....... कि एक दिन समय को भ्रम होगा क्षितिज का .....और उस क्षितिज पर वही  एक शब्द कहने का कि ....  'सुनो'!......... (मैं वही हूँ)। 


-यशवन्त माथुर©
09022023
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